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देश के सबसे बड़े साहित्य सम्मान की घोषणा, हिंदी में अनूदित कृति के लिए 61 लाख रुपए का 'बैंक ऑफ़ बड़ौदा राष्ट्रभाषा सम्मान'

लगता है आने वाला समय हिंदी और भारतीय भाषाओं का है. अब भारत के सार्वजनिक बैंकों में से एक ने अपना पिटारा हिंदी साहित्य के लिए खोल दिया है. इस सम्मान के तहत हिंदी में अनूदित और दो साल के भीतर प्रकाशित कृति को 61 लाख रुपए तक की सम्मान राशि दी जाएगी.

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बैंक ऑफ़ बड़ौदा राष्ट्रभाषा सम्मान' की घोषणा करते अजय के. खुराना, संजीव चड्ढा, नमिता गोखले और संजय के रॉय
बैंक ऑफ़ बड़ौदा राष्ट्रभाषा सम्मान' की घोषणा करते अजय के. खुराना, संजीव चड्ढा, नमिता गोखले और संजय के रॉय

लगता है आने वाला समय हिंदी और भारतीय भाषाओं का है. अब भारत के सार्वजनिक बैंकों में से एक ने अपना पिटारा हिंदी साहित्य के लिए खोला है. इस सम्मान के तहत हिंदी में अनूदित और दो साल के भीतर प्रकाशित कृति को 61 लाख रुपए तक की सम्मान राशि दी जाएगी. इस सम्मान का नाम होगा 'बैंक ऑफ़ बड़ौदा राष्ट्रभाषा सम्मान'. 
यह पुरस्‍कार मूल रूप से क्षेत्रीय भाषाओं में लिखे गए चयनित उपन्‍यास के मूल लेखक और इसके अनुवादक, दोनों को ही प्रदान किया जाएगा. इसके तहत प्रति वर्ष मुख्य रूप से सम्‍मानित उपन्यास के मूल लेखक को रुपए 21 लाख तथा उस कृति के अनुवादक को रुपए 15 लाख की राशि प्रदान की जाएगी. अन्‍य पांच चयनित कृतियों के लिए प्रत्‍येक मूल लेखक को रुपए 3 लाख तथा अनुवादक को रुपए 2 लाख की राशि पुरस्‍कार स्‍वरूप दी जाएगी. 
बैंक ऑफ बड़ौदा का कहना है कि इस सम्‍मान की शुरुआत भारतीय भाषाओं में साहित्यिक लेखन कार्य को प्रोत्‍साहित करने के लिए की गई है. बैंक के प्रबंध निदेशक एवं मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी संजीव चड्ढा ने आज जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के एक विशेष सत्र में इस सम्मान के शुरुआत की घोषणा की. 
भारत जैसे बहुभाषी देश में सभी भारतीय भाषाओं का प्रयोग महत्‍त्‍वपूर्ण है क्‍योंकि ये राष्‍ट्र को विविधता प्रदान करते हुए एक समृद्ध विरासत के निर्माण में सहायक हैं. देश की सभी भाषाएं राष्ट्र के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं एवं अपने साहित्य के माध्यम से राष्ट्र की साहित्यिक एवम् सांस्कृतिक विरासत को संपन्‍न कर रही हैं, इसे ध्यान में रखते 'बैंक ऑफ़ बड़ौदा राष्ट्रभाषा सम्मान' का लक्ष्य भारतीय भाषाओं के बीच सामंजस्य को बढ़ाने और आम लोगों के लिए हिंदी में श्रेष्ठ भारतीय साहित्य उपलब्ध कराने का है. यह सम्‍मान भारत में साहित्यिक अनुवाद कार्य को भी प्रोत्‍साहित करेगा. 
बैंक के प्रबंध निदेशक एवं मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी संजीव चड्ढा ने कहा कि बैंक ऑफ बड़ौदा की इस पहल से न केवल हिंदी भाषा में भारतीय साहित्य के अनुवाद कार्य को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि इससे दूसरी भारतीय भाषाओं में भी गुणवत्‍तापूर्वक लेखन को बढ़ावा मिलेगा. दोनों ही रूप में इससे भारतीय भाषाओं में गुणवत्तापरक लेखन को प्रोत्‍साहन मिलेगा. यह पुरस्‍कार साहित्यिक अनुवाद कार्य को बढ़ावा देने में बेहद कारगर होगा.
कार्यक्रम में उपस्थित बैंक के कार्यपालक निदेशक अजय के. खुराना ने कहा कि यह बैंक के लिए एक ऐतिहासिक कदम है. हम इस सम्‍मान की शुरुआत कर भारतीय भाषा, साहित्‍य और अनुवाद तीनों क्षेत्रों के लिए अहम योगदान देने वाले हैं.
'बैंक ऑफ़ बड़ौदा राष्ट्रभाषा सम्मान' की घोषणा के बाद आयोजित प्रेस वार्ता में चड्ढा ने हर हाल में भारतीय भाषाओं के बीच सामंजस्य पर बल दिया और कहा कि बैंक ऑफ बड़ौदा में कॉल सेंटर पर आने वाली 95 प्रतिशत काल्स भारतीय भाषाओं में होती हैं, जिनमें हिंदी में आने वाली काल्स 85 प्रतिशत हैं. ऐसे में बैंक के लिए यह जरूरी है कि वह भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के यज्ञ में अपनी भूमिका निभाए. 
यह पूछे जाने पर कि आठवीं अनूसूची में शामिल न होने पर भी अंग्रेजी भारतीय भाषा के रूप में समादृत है और एक संपर्क भाषा और राजकाज की भाषा के रूप में उसकी भूमिका है. क्या इस भाषा से भी हिंदी में अनूदित कृति को उसका सम्मान मिलेगा? चड्ढा का उत्तर था कि हम हिंदी को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं. अगर भारतीय अंग्रेजी की किसी कृति का हिंदी में अनुवाद हुआ है और वह श्रेष्ठ कृति पाई गई, तो उस पर अवश्य फैसला किया जाएगा. पर यह निर्णय इस पुरस्कार के लिए चयनित जूरी करेगी.  
इस अवसर पर बैंक के कार्यपालक निदेशक अजय के. खुराना, फेस्टिवल के संस्थापक, निदेशक संजय के रॉय और फेस्टिवल की संस्थापक, निदेशक और साहित्यकार नमिता गोखले, इंटरनेशनल बुकर पुरस्‍कार से सम्‍मानित बहुचर्चित लेखिका गीतांजलि श्री सहित देश-विदेश के जाने-माने साहित्‍य प्रेमी, भाषाविद् सहित अन्‍य प्रबुद्धजन उपस्थित रहे. गोखले का कहना था कि जिस तरह भारतीय भाषाओं की लोकप्रियता बढ़ी है, उसे देखते हुए जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इस दिशा में अपना योगदान दे. अंततः हम सबका यही लक्ष्य है कि भाषाएं समृद्ध हों, साहित्य आगे बढ़े.
वाकई जिस तरह से देश के युवा साहित्यिक मेलों में अपनी उपस्थिति दिखा रहे हैं वह अपने आपमें अद्भुत है. साहित्यिक मेलों की नवंबर से शुरू होने वाली कड़ी 'साहित्य आज तक' जब कोरोना के चलते दो साल के अंतराल के बाद दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में हुआ तो भीड़ ने रिकॉर्ड तोड़ दिए. पुलिस को गेट बंद करने का अनुरोध करना पड़ा और आयोजक इंडिया टुडे समूह को हाउसफुल का बोर्ड लगाने पर बाध्य होना पड़ा. 
भारतीय भाषाओं के सबसे बड़े उत्सव 'साहित्य आज तक' के दौरान युवाओं, साहित्यकारों, साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति  का यह सिलसिला उर्दू का उत्सव मनाने वाले मेले 'जश्न-ए-रेख़्ता' और विश्व साहित्य और अंग्रेजी साहित्य के जलसे 'जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल' के दौरान भी जस का तस कायम है, और इसके राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा फरवरी में आयोजित हो रहे विश्व पुस्तक मेले के दौरान भी कायम रहने की उम्मीद है. युवा पीढ़ी और निजी उद्योग जगत के साथ ही सार्वजनिक उपक्रमों ने जिस तरह इन मेलों में अपनी रूचि दिखाई है वह सराहनीय है. बस सरकारी स्तर पर भी भाषा, साहित्य और साहित्यकारों को उनका मुकाम मिले, यह कामना है.
 

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